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Makar Sankranti 2026: कब है, क्यों मनाई जाती है और कैसे मनाएँ जानिए पूरी जानकारी

भारत त्योहारों की भूमि है और यहां हर त्योहार का एक अनूठा महत्व है। इन्हीं में से एक है मकर संक्रांति, जिसे सूर्य उपासना और ऋतु परिवर्तन का पर्व कहा जाता है। 2026 में यह पावन पर्व 15 जनवरी, गुरुवार को मनाया जाएगा। (Makar Sankranti ke din kya nahi karna chahiye) यह दिन विशेष इसलिए है क्योंकि सूर्य देव अपनी दक्षिणायन यात्रा समाप्त कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिसे उत्तरायण की शुरुआत माना जाता है।

मकर संक्रांति को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग नामों से जाना जाता है—जैसे पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण, और असम में माघ बिहू। इस दिन तिल-गुड़ के व्यंजन बनते हैं, पतंगबाजी का उत्सव होता है और दान-पुण्य को विशेष महत्व दिया जाता है।

मकर संक्रांति 2026 की तिथि और समय

  • पर्व तिथि: 15 जनवरी 2026, गुरुवार
  • सूर्य मकर राशि में प्रवेश: सुबह 8:22 बजे
  • पुण्य काल: सुबह 8:22 बजे से शाम 5:30 बजे तक
  • महापुण्य काल: सुबह 9:15 बजे से 11:45 बजे तक

मकर संक्रांति का ज्योतिषीय महत्व

मकर संक्रांति को सूर्य का विशेष पर्व कहा जाता है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं और उत्तरायण की शुरुआत होती है।

  • उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि माना जाता है।
  • इस समय से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।
  • ज्योतिष के अनुसार यह काल नए कार्य, विवाह, गृह प्रवेश और धार्मिक यात्रा के लिए शुभ है।
  • सूर्य मकर राशि में शनि के घर प्रवेश करते हैं, जिसे शनि-सूर्य संयोग भी कहते हैं। यह संयोग कर्म और प्रकाश के संतुलन का प्रतीक है।

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में सूर्य देव को जीवनदाता और ऊर्जा का स्रोत माना गया है।

  • मान्यता है कि इसी दिन भीष्म पितामह ने महाभारत के युद्ध में अपने शरीर का त्याग किया था।
  • गंगा स्नान और दान-पुण्य को विशेष महत्व दिया जाता है।
  • तिल और गुड़ के सेवन को शुभ माना जाता है क्योंकि यह शरीर को ऊष्मा और पवित्रता प्रदान करता है।

मकर संक्रांति की परंपराएँ और रीति-रिवाज

1. स्नान और दान

सुबह गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान करने का महत्व है। स्नान के बाद तिल, गुड़, अन्न, वस्त्र और धान्य का दान किया जाता है।

2. तिल-गुड़ के व्यंजन

इस दिन तिल और गुड़ के लड्डू, गजक और रेवड़ी बांटी जाती हैं। इसे आपसी प्रेम और मधुर संबंधों का प्रतीक माना जाता है।

3. पतंगबाजी

गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। यह उत्सव लोगों को एकता और आनंद से जोड़ता है।

4. सूर्य उपासना

सूर्य देव को जल अर्पित करना, मंत्रोच्चार करना और आभार प्रकट करना मुख्य अनुष्ठान है।

5. कृषि पर्व

पोंगल और बिहू जैसे रूपों में किसान फसल कटाई का उत्सव मनाते हैं और प्रकृति का आभार व्यक्त करते हैं।

भारत में मकर संक्रांति के अलग-अलग रूप

  • पंजाब – लोहड़ी: फसल कटाई का उत्सव, जिसमें अलाव जलाकर नृत्य और गाने होते हैं।
  • गुजरात और राजस्थान – उत्तरायण: पतंगबाजी का भव्य आयोजन, छतों पर मेले जैसा माहौल।
  • तमिलनाडु – पोंगल: चार दिन का त्योहार जिसमें फसल और सूर्य की पूजा होती है।
  • असम – माघ बिहू: नृत्य, भजन और सामूहिक भोज के साथ उत्सव मनाया जाता है।
  • उत्तर भारत: गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व।

मकर संक्रांति के खास पकवान

इस दिन बनाए जाने वाले व्यंजन न सिर्फ स्वादिष्ट होते हैं बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं।

  • तिल-गुड़ के लड्डू
  • गजक और रेवड़ी
  • खिचड़ी
  • पोंगल (चावल और दाल का व्यंजन)
  • घी और गुड़ से बने व्यंजन

मकर संक्रांति और स्वास्थ्य

आयुर्वेद के अनुसार तिल और गुड़ का सेवन इस मौसम में बेहद फायदेमंद होता है। यह शरीर को गर्म रखता है और ऊर्जा प्रदान करता है। साथ ही, इस दिन सूर्य स्नान और सुबह की धूप को स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना जाता है।

मकर संक्रांति 2026 से जुड़ी पौराणिक कथाएँ

  • पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने मकर राशि में आते हैं।
  • एक अन्य कथा में कहा गया है कि गंगा इसी दिन भागीरथ की तपस्या से धरती पर अवतरित हुई थी।
  • महाभारत में भीष्म पितामह ने इसी दिन देह त्यागकर मोक्ष प्राप्त किया था।

निष्कर्ष

मकर संक्रांति 2026 सिर्फ एक पर्व नहीं बल्कि सूर्य, ऋतु और कृषि चक्र का उत्सव है। यह दिन हमें दान, उपासना, और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का संदेश देता है। तिल-गुड़ की मिठास, पतंगों की उड़ान और सूर्य उपासना का महत्व इस पर्व को और खास बनाता है। चाहे वह लोहड़ी हो, पोंगल हो या बिहू—हर राज्य की परंपराएँ भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती हैं।

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