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महाभारत का अंतिम अध्याय: मौसल पर्व – जब यदुवंश का अंत हुआ

मौसल पर्व महाभारत का अठारहवां और अंतिम अध्याय है, जो यदुवंश के विनाश और श्रीकृष्ण के पृथ्वी से प्रस्थान की कथा को प्रस्तुत करता है। यह अध्याय दिखाता है कि कर्म और समय का चक्र कितना शक्तिशाली होता है—even for the most powerful clans.

युद्ध के वर्षों बाद, जब द्वारका शांति में थी, यदुवंश के वीरों में अहंकार और घमंड घर कर गया। एक ऋषि का अपमान करने पर उन्होंने शाप दिया कि यदुवंश एक-दूसरे के हाथों से नष्ट हो जाएगा। शाप के फलस्वरूप, एक दिन यादवों ने सराें का नशा किया और आपसी झगड़ों में एक-दूसरे की मुसलों (गदा जैसे हथियार) से हत्या कर दी।

इस दुखद अंत के बाद, श्रीकृष्ण ने अपने प्राण एक पीपल के पेड़ के नीचे योगमुद्रा में त्याग दिए। वहीं, बलराम जी ने भी समाधि ली। द्वारका समुद्र में डूब गई, और यदुवंश समाप्त हो गया।

इस अध्याय से यह सिखने को मिलता है कि अहंकार, अधर्म और अपमान का परिणाम विनाश होता है, चाहे वो कितने ही महान क्यों न हों।

मौसल पर्व सिर्फ एक इतिहास नहीं, बल्कि मानवता के लिए चेतावनी है कि शक्ति के साथ संयम जरूरी है। श्रीकृष्ण का यह अन्तिम संदेश है — “धर्म की रक्षा ही जीवन का सार है।

भगवान राम की कृपा आप सभी पर बनी रहे..

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